पाण्डु अर्थात anaemia की चिकित्सा अनुसार :
चरक संहिता के अध्याय १६ में चरक ने पाण्डु की अवं संपूर्ण वर्णन किया हे उसमें से कुछ उपयोगी चिकित्सा को यह आअज के परपेक्ष्य में दर्शाने का प्रयावात स किया हे:
सा. चिकित्सा:
१. सबसे पहले पाण्डु रोगी का करे उसके बाद उसे तीक्षण वामन विरेचन करक औषध का प्रयोग कर संशोधन करे|
२. यदि साध्य पाण्डु का रोगी हो तो तिक्त द्रव्यों से निर्मित विरेचक द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए इस समय यह दोष का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए : १. वात प्रकोप के लक्षण हो तो स्निग्धा द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिये
२.यदि पित्त प्रकोप तो तिक्त रस एवं शीत वीर्य से एक्ट द्रव्य ३.कफ होने पर:कटु तिक्त रस युक्त एवं उशना वीर्य युक्त द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए
३. यदि पाण्डु मृतिका हो तो तिक्ष्ण संशोधन कर उसकी चिकित्सा करनी चाहिए खायी गई मिटटी आ जाएगी उसके बाद ही उसमे शुद्ध घी का प्रयोग करे|
ये पाण्डु रोग की चिकित्सा का समान्य सिद्धांत हे अब में पायुक्त होने वाली औषध का संक्षिप्त वर्णन करूँगा |
चिकित्सा में प्रयुक्त औषध :
१. घृत : १.पंचकल्याण घृत
२.महातिक्त घृत
३.कल्याण घृत
२.दोषानुसार विरचनार्थक औषध :
१.वात :केवल दूध अधिक मात्रा में या गोमूत्र मिला दूध
२.पित्त: निशोथ चूर्ण अवं दुनि मात्रा में चीनी मिलाकर देवे
३,कफ:हरीतकी कल्क को गौमूत्र के साथं देवे
(>गोमूत्र का प्रयोग ६-७ दिनों तक करे अवं इसमें त्रिफला क्वाथ या जो दुग्ध मिलकर दे
>हरीतकी का २-४ चूर्ण गोमूत्र ३-४ दिनों तक )
३. मृदभक्षण जन्य :केशरदी चूर्ण अवं लहभस्म का ७ दिनों तक प्रयोग करे (जिसमे जो मूत्र की भावना दी गई हो )
३. सिद्धयोग: १. पुनर्नवा मंडूर
२. मंडूर भस्म
३. मंडूर वटिका
४. नवायस लौह चूर्ण
५.कुमार्यासव एंड लोहासव
६.आरोग्यवर्धिनीवटी
इन सिध्धा योयोगो का प्रयोग पाण्डु के रोगियों में करे रोगी के बलाबल के अनुसार ही मात्रा दे|
४.पथ्य(diets and liquides)
:
1 .पुराने चावल पकाकर खिलाये जौ गेहू मुंग और जंगल पशुओ के मांस दे
2. गोमूत्र एवं गोदुग्ध के साथ पिलाये
३. प्याज लहसून पालक पपीता बेंगन आदि का प्रयोग|
यह चिकित्सा चरक के अनुसार हे इसका प्रयोग करे एकराये वं संशोधन के पूर्व स्नेहन स्वेदन सही तरिके से एवं संपूर्ण स्वेदम के बाद ही संशोधन। ...
धन्यवाद्।
चरक संहिता के अध्याय १६ में चरक ने पाण्डु की अवं संपूर्ण वर्णन किया हे उसमें से कुछ उपयोगी चिकित्सा को यह आअज के परपेक्ष्य में दर्शाने का प्रयावात स किया हे:
सा. चिकित्सा:
१. सबसे पहले पाण्डु रोगी का करे उसके बाद उसे तीक्षण वामन विरेचन करक औषध का प्रयोग कर संशोधन करे|
२. यदि साध्य पाण्डु का रोगी हो तो तिक्त द्रव्यों से निर्मित विरेचक द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए इस समय यह दोष का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए : १. वात प्रकोप के लक्षण हो तो स्निग्धा द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिये
२.यदि पित्त प्रकोप तो तिक्त रस एवं शीत वीर्य से एक्ट द्रव्य ३.कफ होने पर:कटु तिक्त रस युक्त एवं उशना वीर्य युक्त द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए
३. यदि पाण्डु मृतिका हो तो तिक्ष्ण संशोधन कर उसकी चिकित्सा करनी चाहिए खायी गई मिटटी आ जाएगी उसके बाद ही उसमे शुद्ध घी का प्रयोग करे|
ये पाण्डु रोग की चिकित्सा का समान्य सिद्धांत हे अब में पायुक्त होने वाली औषध का संक्षिप्त वर्णन करूँगा |
चिकित्सा में प्रयुक्त औषध :
१. घृत : १.पंचकल्याण घृत
२.महातिक्त घृत
३.कल्याण घृत
२.दोषानुसार विरचनार्थक औषध :
१.वात :केवल दूध अधिक मात्रा में या गोमूत्र मिला दूध
२.पित्त: निशोथ चूर्ण अवं दुनि मात्रा में चीनी मिलाकर देवे
३,कफ:हरीतकी कल्क को गौमूत्र के साथं देवे
(>गोमूत्र का प्रयोग ६-७ दिनों तक करे अवं इसमें त्रिफला क्वाथ या जो दुग्ध मिलकर दे
>हरीतकी का २-४ चूर्ण गोमूत्र ३-४ दिनों तक )
३. मृदभक्षण जन्य :केशरदी चूर्ण अवं लहभस्म का ७ दिनों तक प्रयोग करे (जिसमे जो मूत्र की भावना दी गई हो )
३. सिद्धयोग: १. पुनर्नवा मंडूर
२. मंडूर भस्म
३. मंडूर वटिका
४. नवायस लौह चूर्ण
५.कुमार्यासव एंड लोहासव
६.आरोग्यवर्धिनीवटी
इन सिध्धा योयोगो का प्रयोग पाण्डु के रोगियों में करे रोगी के बलाबल के अनुसार ही मात्रा दे|
४.पथ्य(diets and liquides)
:
1 .पुराने चावल पकाकर खिलाये जौ गेहू मुंग और जंगल पशुओ के मांस दे
2. गोमूत्र एवं गोदुग्ध के साथ पिलाये
३. प्याज लहसून पालक पपीता बेंगन आदि का प्रयोग|
यह चिकित्सा चरक के अनुसार हे इसका प्रयोग करे एकराये वं संशोधन के पूर्व स्नेहन स्वेदन सही तरिके से एवं संपूर्ण स्वेदम के बाद ही संशोधन। ...
धन्यवाद्।
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